Hindi Story Book For Child:
R. K. Narayan
Nationality: Indian
Categories: Fiction, Short Stories / Fiction, Others, Travel
Born: October 10, 1906
Died: May 13, 2001
Exceptionally respected for his novels, short stories, R K Narayan was born in 1906 in Madras. He studied in Mysore
and lived there for over five decades. Narayan created a fictional town of Malgudi in the pages of 22 books (14 novels &
eight short-story collections). Narayan had a humo...
Categories: Fiction, Short Stories / Fiction, Others, Travel
Born: October 10, 1906
Died: May 13, 2001
Exceptionally respected for his novels, short stories, R K Narayan was born in 1906 in Madras. He studied in Mysore
and lived there for over five decades. Narayan created a fictional town of Malgudi in the pages of 22 books (14 novels &
eight short-story collections). Narayan had a humo...
हीराबाई - ऐतिहासिक उपन्यास
'हीराबाई' पुस्तक किशोरी लाल गोस्वामी जी की रचना है। यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है।
कालक्रम की दृष्टि से श्रीनिवासदास के पश्चात् हिन्दी उपन्यास क्षेत्र में किशोरीलाल गोस्वामी का स्थानहै। श्रीनिवासदास ने नई चाल की पुस्तक लिखकर जिस विधा का श्रीगणेश किया था; किशोरीलालगोस्वामी ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति उसी पर केन्द्रित कर दी थी। अपने उपन्यासों की भूमिकाओं में उन्होंनेअपनी कुछ मान्यताओं को प्रकट किया है।
अपने समकालीन उपन्यासकारों की अपेक्षा, किशोरीलाल गोस्वामी के उपन्यासों में सामाजिक तत्त्व काआधिक्य है। वे तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी-डकैती उपन्यासों से सम्बद्ध नहीं है; किन्तु घटना वैचित्र्यद्वारा रस-उत्पादन-हेतु उन्होंने भी सामाजिक जीवन का वही पक्ष ग्रहण किया है, जो कथा रस से पाठकके हृदय को जासूसी ऐयारी उपन्यासों के ही समान सम्मोहित करे। अतः यह आवश्यक था कि समाज केउस भ्रष्ट वर्ग का चित्रण किया जाता, जिसमें तथाकथित रस से पूर्ण घटना वैचित्र्य का बाहुल्य था।
फाइल का आकार: 6 Mb
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कालक्रम की दृष्टि से श्रीनिवासदास के पश्चात् हिन्दी उपन्यास क्षेत्र में किशोरीलाल गोस्वामी का स्थानहै। श्रीनिवासदास ने नई चाल की पुस्तक लिखकर जिस विधा का श्रीगणेश किया था; किशोरीलालगोस्वामी ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति उसी पर केन्द्रित कर दी थी। अपने उपन्यासों की भूमिकाओं में उन्होंनेअपनी कुछ मान्यताओं को प्रकट किया है।
अपने समकालीन उपन्यासकारों की अपेक्षा, किशोरीलाल गोस्वामी के उपन्यासों में सामाजिक तत्त्व काआधिक्य है। वे तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी-डकैती उपन्यासों से सम्बद्ध नहीं है; किन्तु घटना वैचित्र्यद्वारा रस-उत्पादन-हेतु उन्होंने भी सामाजिक जीवन का वही पक्ष ग्रहण किया है, जो कथा रस से पाठकके हृदय को जासूसी ऐयारी उपन्यासों के ही समान सम्मोहित करे। अतः यह आवश्यक था कि समाज केउस भ्रष्ट वर्ग का चित्रण किया जाता, जिसमें तथाकथित रस से पूर्ण घटना वैचित्र्य का बाहुल्य था।
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टॉम काका की कुटिया (उपन्यास)
प्रस्तुत उपन्यास 'टॉम काका की कुटिया' विख्यात अंग्रेजी पुस्तक 'Uncle Tom's Cabin'का हिंदी अनुवाद है।
घर- गृहस्थी के अनेक झंझटों और बाल -बच्चों की साज -सँभाल में दिनभर लगी रहने वाली महिला हैरियट वीचर स्टो ने गुलाम -प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टॉम काका की कुटिया’ लिखकर तैयार की , जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचना के रुप में की जाती है।
अगर अमेरिका में रंगभेद के विरुद्ध‘टॉम काका की कुटिया’ जैसा ताकतवर उपन्यास नहीं लिखा गया होता, तो आज की पश्चिमी दुनिया उतनी चमकदार न होती जैसी वह आज है ।
अवश्य पढ़ें।
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घर- गृहस्थी के अनेक झंझटों और बाल -बच्चों की साज -सँभाल में दिनभर लगी रहने वाली महिला हैरियट वीचर स्टो ने गुलाम -प्रथा के विरुद्ध आग उगलने वाली वह पुस्तक ‘टॉम काका की कुटिया’ लिखकर तैयार की , जिसकी प्रशंसा आज भी बेजोड़ रचना के रुप में की जाती है।
अगर अमेरिका में रंगभेद के विरुद्ध‘टॉम काका की कुटिया’ जैसा ताकतवर उपन्यास नहीं लिखा गया होता, तो आज की पश्चिमी दुनिया उतनी चमकदार न होती जैसी वह आज है ।
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'प्रेमजोगिनी' - भारतेंदु हरिश्चंद्र
'प्रेमजोगिनी' - भारतेंदु हरिश्चंद्र
Author: Admin | Posted at: 5:41 pm | Filed Under: नाटक, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र |
'प्रेमजोगिनी' भारतेंदु हरिश्चंद्र की एक दिल को छू लेने वाली नाटिका है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेन्दु हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम हरिश्चन्द्र था, भारतेन्दु उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए।
हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया।
भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।
फाइल का आकार: ४ Mb
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Author: Admin | Posted at: 5:41 pm | Filed Under: नाटक, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र |
'प्रेमजोगिनी' भारतेंदु हरिश्चंद्र की एक दिल को छू लेने वाली नाटिका है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। भारतेन्दु हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम हरिश्चन्द्र था, भारतेन्दु उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए।
हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया।
भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया।
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ध्यान से आत्म-चिकित्सा
'ध्यान से आत्म-चिकित्सा' पुस्तक में बताया गया है कि किस प्रकार ध्यान की सहायता से हम विभिन्न रोगों से छूटकारा पा सकते है .
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
बेहतर स्वास्थ्य
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महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित मे बांधा जाता है उस मे इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
बेहतर स्वास्थ्य
- शरीर की रोग-प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि
- रक्तचाप में कमी
- तनाव में कमी
- स्मृति-क्षय में कमी (स्मरण शक्ति में वृद्धि)
- वृद्ध होने की गति में कमी
- मन शान्त होने पर उत्पादक शक्ति बढती है; लेखन आदि रचनात्मक कार्यों में यह विशेष रूप से लागू होता है।
- ध्यान से हमे अपने जीवन का उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है। इसी तरह किसी कार्य का उद्देश्य एवं महत्ता का सही ज्ञान हो पाता है।
- मन की यही प्रकृति (आदत) है कि वह छोटी-छोटी अर्थहीन बातों को बडा करके गंभीर समस्यायों के रूप में बदल देता है। ध्यान से हम अर्थहीन बातों की समझ बढ जाती है; उनकी चिन्ता करना छोड देते हैं; सदा बडी तस्वीर देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
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जगदीश चन्द्र माथुर का नाटक - कोणार्क
'कोणार्क' जगदीश चन्द्र माथुर का एक प्रसिद्ध नाटक है। यह नाटक कोणार्क के सूर्य मंदिर पर आधारित है ।
कोणार्क का सूर्य मंदिर (जिसे अंग्रेज़ी में ब्लैक पगोडा भी कहा गया है), भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के पुरी नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से १२३६– १२६४ ई।पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है।
इसे हमारे पास प्रिंसेस कौशल्या ने भेजा है। आशा है, आपको पसंद आएगा।
फाइल का आकार: 3 Mb
8 डाउनलोड लिंक (Rapidshare, Hotfile आदि) :
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कोणार्क का सूर्य मंदिर (जिसे अंग्रेज़ी में ब्लैक पगोडा भी कहा गया है), भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी जिले के पुरी नामक शहर में स्थित है। इसे लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से १२३६– १२६४ ई।पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत की सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन १९८४ में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव(अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है।
इसे हमारे पास प्रिंसेस कौशल्या ने भेजा है। आशा है, आपको पसंद आएगा।
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